मैं कब से प्रश्न बन कर भटकता हूं
मुझे कोई यक्ष नहीं मिलता
जो मुझे थाम ले,सहेज ले
पूछने के वास्ते
किसी युधिष्ठिर से
मैं यूं ही निरर्थक सा भटकता हूं
यह जानता हूं
कि जब तक पूछा न जाए
तब तक
किसी भी प्रश्न का अस्तित्व
कोई मायने नहीं रखता
और फिर अगर
मुझे कोई यक्ष मिल भी गया
और उसने मुझे सहेज भी लिया
और फिर पूछ भी लिया
किसी युधिष्ठिर से
और अगर
युधिष्ठिर ही उत्तर नहीं दे पाया तो
तो मेरा क्या होगा?
शायद तब एक और अश्वत्थामा का जन्म होगा
अश्वत्थामा बन कर भटकने से
बेहतर है
यूं ही प्रश्न बन कर भटकते रहना
क्योंकि
होती है अधिक पीड़ादायी
अमरता
मृत्यु से भी.
-पंकज सुबीर
सुन्दर कविता
ReplyDeleteइतने गहरे विचार बहुत खूब
ReplyDeleteमैंने हाल ही में ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि आप मेरे पोस्ट को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्दश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद