अब तक कुछ किया नहीं, तबियत के मुताबिक
बस निभाते रह गए फकत,रवायत के मुताबिक
कू ब कू शोर बहुत है गुलशन में बहार आने की
रंग फूलों के निखरने लगे लताफ़त के मुताबिक
जोरे हुकूमत से तो सर झुका नहीं सकते अपना
तस्लीम किया करते हैं हम,वज़ाहत के मुताबिक
ताउम्र एहतिराम किया चाहा किया दिल से जिसे
पेशे नजर हम जब भी हुए,ज़ियारत के मुताबिक़
है बात दीगर दर्दो गम कुछ ज्यादे मिले उल्फत में
हर चीज कहाँ बँटती है अब वसियत के मुताबिक
उस दिन के बाद लौटकर फिर गुजरे नहीं गली से
अब आईने में भी पराए से हुए सूरत के मुताबिक
वक्त की रफ्तार में, हस्ती हमारी कुछ भी तो नहीं
मिलना है जो मिलता है इस किस्मत के मुताबिक
कैद ए हयात से न मिली अब तक निजात हमको
चंद सांसों की बस इजाजत जमानत के मुताबिक
-विनोद प्रसाद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति !
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