सब की बोलती बंद है इन दिनों,
वक़्त बोल रहा है ..
बड़ी ही ख़ामोशी से
कोई बहस नहीं,
ना ही कोई,
सुनवाई होती है
एक इशारा होता है
और पूरी क़ायनात उस पर
अमल करती है!!!
…
सब तैयार हैं कमर कसकर,
बादल, बिजली, बरखा
के साथ कुछ ऐसे वायरस भी
जिनका इलाज़,
सिर्फ़ सतर्कता है
जाने किस घड़ी
करादे, वक़्त ये मुनादी.…
ढेर लगा दो लाशों के,
कोई बचना नहीं चाहिये!!
2020 फिर लौट कर
नहीं आएगा,
जो बच गया उसे
ये सबक याद रहेगा,
ज़िंदगी की डोर
सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है!!!
© सीमा सदा सिंघल
बहुत बहुत आभार अनुजा, स्नेहिल शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबिल्कुल सही। बहुत बढ़िया रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.7.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा -3750 पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजिंदगी ने कमर कस ली है कि इस बार मानव को सबक सिखा के रहेगी, सबक जो वह भूलता जा रहा था
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