तिनका तिनका जोड़,
बना लिया एक धाम।
गहन सोच में डूब रही है
प्यारी बया बैठ मुकाम।
शांत है कितनी
नहीं कोई आक्रोश |
सिमट गई स्वयं मे
नहीं कोई रोष |
सोच रही है...
कैसे परिवार बढ़ाऊँ?
कैसे घर बसाऊँ?
ढह गया जो नीड़,
बारिश में पिछली बार।
फिर हिम्मत करती हूँ इस बार
संसार था सपनों वाला
परिवार बड़ा निराला।
तड़पे नन्हें जिन्दगी को
नहीं सहारा था जीने को।
यही दर्द लिये बैठी हूँ
गम को कहाँ भूली हूँ।
करना होगा पुनः प्रयास
परिवार बनाना है फिर खास ।
बनी रहे जीवन में आस।
-डॉ.बंदना जैन
कोटा,राजस्थान
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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