मोहब्बत हो गई जिस को उसे अब देखना क्या है
भला क्या है बुरा क्या है सज़ा क्या है जज़ा क्या है
ज़रा तुम सामने आओ नज़र हम से तो टकराव
किसे फिर होश हो तुम ने कहा क्या है सुना क्या है
मोहब्बत जुर्म ऐसा है कि मुजरिम है खड़ा बे-सुध
किया क्या है गुनह क्या है सज़ा क्या है ख़ता क्या है
न आना इश्क़ के बाज़ार में अंधी तिजारत है
दिया क्या है लिया क्या है बिका क्या है बचा क्या है
ज़माना झूम उट्ठा है सदा-ए-दाद आती है
न जाने आज 'माहम' ने ग़ज़ल में कह दिया क्या है
- माहम शाह
ज़रा तुम सामने आओ नज़र हम से तो टकराव
ReplyDeleteकिसे फिर होश हो तुम ने कहा क्या है सुना क्या है
वाह रचना 👌👌👌👌
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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