मौन मयंक
हर्षित उडुगण
धरा विमुग्ध
गिरि चोटी से
बहे पिघल कर
फेनिल दुग्ध
सूर्य रश्मियाँ
रचें जल कण से
इन्द्रधनुष
विस्मित सृष्टि
पुलकित प्रकृति
मुग्ध मनुष्य
यादें सुलगीं
पिघला दिनकर
सुलगा मन
रोई वसुधा
बादल बन कर
बरसे घन
खिले सुमन
सुरभित पवन
विहँसी उषा
लपेट बाना
गहन तिमिर का
चल दी निशा
हुई सुबह
जगमग हो गयी
संसृति सारी
नीले नभ में
कलरव करतीं
चिड़ियाँ प्यारी
शाम हो गयी
समाधि ली जल में
क्षुब्ध रवि ने
किया उदास
अनुरक्त धरा को
सूर्य छवि ने
घिरी घटाएं
बरसे जल कण
कोयल बोली
मस्त हवा ने
वन उपवन में
खुशबू घोली
नाच रहे हैं
ठुमक ठुमक के
मस्त मयूर
देख रहे हैं
वनचर नभ में
गिरा सिन्दूर
-साधना वैद
वाह!! साधना जी के आज के अभिनव हाइकु!!! बहुत बहुत आभार और शुभकामनायें 🙏🙏
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