Thursday, July 23, 2020

फिर भी हम चले गए ...ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

दुष्यन्त' चले गए और 'अदम' चले गए,
ग़ज़ल तुम्हारे ज़ख़्म के मरहम चले गए।

मैं एक शेर तो पढ़ूं मगर दाद कौन देगा,
मेरी शायरी से पहले मोहतरम चले गए।

उनको मर जाने से इतना फायदा हुआ,
ज़िंदगी से बिछुड़कर सारे ग़म चले गए।

इतनी दुआएं दी कि मालामाल हो गया,
फ़कीर के कासे में जो दिरहम चले गए।

माहताब ने घर आने में कुछ देर कर दी,
अंधेरे के साथ जुल्फों के ख़म चले गए।

अगर फट गए तो सैलाब ज़रूर आएगा,
उनके घर मेरे आंसुओं के बम चले गए।

जन्नत से झांककर कहते हैं आज शायर,
मुशायरे हो रहे हैं फिर भी हम चले गए।

चोट खाकर भी उसने मैदान नहीं छोड़ा,
लगता है तीर हमारे कुछ नरम चले गए।

ललकार के बोलो कि सरहद छोड़ जाएं,
उनकी ताक़त के कब के भरम चले गए।

क़द का गुरूर ना कर ऐ साहिबे मसनद,
कितनों के सल्तनत और हरम चले गए।

छालों ने अभी तक भी पीछा नहीं छोड़ा,
ज़फ़र मुंह में निवाले क्या गरम चले गए।

-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ़-413, कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32

4 comments:

  1. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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