पानी सी होती हैं स्त्रियाँ
हर खाली स्थान बड़ी सरलता से
अपने वजूद से भर देती हैं
बगैर किसी आडंबर के
बगैर किसी अतिरंजना के..
आश्चर्य ये
कि जिस रंग का अभाव हो
उसी रंग में रंग जाती हैं ..
जाड़े में धूप ..
उमस में चांदनी ..
आँसुओं में बादल..
उदासी में धनक..
छोटी बहन को एक भाई की कमी खटकी
बड़ी ने तुरंत कलाई आगे बढ़ाई
राखी सिर्फ बंधवाई ही नहीं
बल्कि राखी का हर कर्तव्य
खुशी खुशी निभाया..
माँ बाबा को बेटा चाहिए था
बेटी न जाने कब बेटा बन गई
और आजीवन बनी रही..
जब जब राष्ट्र को शूरवीरों की आवश्यकता हुई
बेटियों ने हर संकोच त्याग
केसरिया चोला ओढ़ा..
और जब जब किन्ही बच्चों ने पिता की
अनुपस्थिति में उन्हें याद किया
माओं ने यह दायित्व भी बखूबी निभाया..
उन्होंने ममता और वात्सलय में
थोड़ा अनुशासन
और पूरी जिम्मेदारी मिलाई
और लो बन गई पापा वाली मां...
कि यूँ ही नही बन जाती हैं स्त्रियाँ
शक्ति पुंज..
~निधि सक्सेना
स्त्रियाँ तो बस स्त्रियाँ ही होती हैं - शिव की शक्ति, सृजन का सूत्रधार और संस्कृति का सूत्र! बहुत सुंदर रचना!!!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहम्म्म
ReplyDeleteहम सब कुछ हो जाती हैं :)
पर जाएं इंसान कब हो पाएंगी, महानता के रंग से धूल कर सिर्फ इंसान
आपकी रचना सत्य है। .... हर सत्य की तरह कड़वा :)
हम सब के सब कुछ हो जाती हैं। .. पानी भी धुल भी फूल भी शूल भी :)
आपकी रचना को विचारों एम् उथल पुथल मचाती हैं , साहसिक रचना
सादर नमस्कार