Saturday, June 22, 2019

ज़िंदगी और मौत ....इन्द्रा

मौत ने पूछा
ज़िंदगी एक छलावा है
एक झूठ है
हर दिन हर पल तुम्हारा साथ छोड़ती जाती है
फिर भी तुम उसे प्यार करते हो
मैं एक सच्चाई हूँ अंत तक तुम्हारा साथ निभाती हूँ
पर फिर भी तुम मुझसे नफरत करते हो
मुझसे डरते हो
मुझसे समझौता कर लो
फिर कोई डर तुम्हें डरा न पायेगा
मैंने कहा
तुम सत्य हो शाश्वत हो
अनिवार्य हो
पर तुमसे कैसे समझौता करलूं
तुम्हारी टाइमिंग बहुत गलत होती है
तुम गलत समय पर गलत लोगों को ले जाती हो
तुम गलत समय पर गलत तरीके से आती हो
पूछो उन बदनसीब अभिवावकों से
जिन्होंने खोय अपने लाल असमय
पूछो उन से ,
जिन्होंने ने गवाए अपने परिजन
आतंकवादियों के हाथों
उम्र थी जान गवाने की
फिर जो मजबूर, पीड़ित , बीमार
मरने की प्रार्थना करते हैं
उन्हें तुम तड़पने को छोड़ देती हो
बच्चों ,जवानों को अपना शिकार बनाती हो
कैसे करलूं तुमसे समझौता
तुम कड़वा सच हो, अनिवार्य हो पर
न्यायसंगत नहीं
काम से काम मेरी नज़र में तो नहीं
ज़िन्दगी लाख छलावा सही
मीठा झूठ सही
पर सुन्दर है जीने का,
लड़ने का हौसला देती है

-इन्द्रा


5 comments:

  1. चिन्तनपरक सुन्दर सृजन ।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति हृदय स्पर्शी ।

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  3. वाह बहुत सुंदर रचना।

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