अफ़सोस किस बात का करूँ,
दिल तो मिला था पलभर,
लेकिन विचार नही मिले थे पल भर।
किसी से भी किसी तरह नहीं,
दुनिया की खब़र वो देकर चले गये,
उन्हें कानों-कान ख़बर नहीं चला,
हम उनके लिए कितने दर्द सह गये।
वो समभाव था या डर था,
एक को समझकर वो रुक गये,
एक को हम अपनाकर चलते-चले गये।
फूल भी नहीं थे तो अंगारे भी नहीं थे,
वो जो थे वो थे ही,
जो बचा इनमें से दूसरा,
उससे जल कर हम राख़ हो गये।
जीवन का झंझावत हमें दूर रखता है,
फिर से उनके हिसाब से जीने में,
जो मैं पहले था उसी तरह जीते चले गये।
न कल्पना में कुछ था,
न हक़ीक़त में कुछ हाथ लगा,
मैं खाली था हम खाली रह गये।
-राहुलदेव गौतम
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-06-2019) को “प्रीत का व्याकरण” तथा “टूटते अनुबन्ध” का विमोचन" (चर्चा अंक- 3356) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर सृजन ।
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