मेरी ही करुणा पर
टिकी है ये सृष्टि ..
मेरे ही स्नेह से
उन्मुक्त होते हैं नक्षत्र..
मेरे ही प्रेम से
आनंद प्रस्फुटित होता है ..
मेरे ही सौंदर्य पर
डोलता है लालित्य ..
और मेरे ही विनय पर
टिका है दंभ..
कि प्रेम स्नेह और करुणा का अक्षय पात्र हूँ मैं
जितना उलीच लो
ये घट छलकता ही रहेगा ..
-निधि सक्सेना
सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर कोमल।
ReplyDeleteवाह, सुन्दर.
ReplyDeleteवाह ! सुंदर प्र्स्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पिता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ! कितनी सत्य कितनी आनंददायी यह अनुभूति !
ReplyDeleteकि प्रेम स्नेह और करुणा का अक्षय पात्र हूँ मैं
जितना उलीच लो
ये घट छलकता ही रहेगा ..
अति सुन्दर .....