हवाओं की.. कोई सरहद नहीं होती
ये तो सबकी हैं बेलौस बहा करती हैं
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हवाएँ हैं, ये कब किसी से डरती हैं
जहाँ भी चाहें बेख़ौफ़ चला करती हैं
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चाहो तो कोशिश कर के देख लो मगर
बड़ी ज़िद्दी हैं कहाँ किसी की सुनती हैं
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हवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
इन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
- मंजू मिश्रा
बेलौस - निस्वार्थ, बिना किसी भेदभाव के
यथार्थ पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया मंजू मिश्रा जी
ReplyDeleteहवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
ReplyDeleteइन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
बहुत सुंदर ...
बेहतरीन सृजन दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
वाह!!!बेहतरीन !!
ReplyDeleteहवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
ReplyDeleteइन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
....बहुत सुंदर
बेहतरीन शेर
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