हवाओं की.. कोई सरहद नहीं होती
ये तो सबकी हैं बेलौस बहा करती हैं
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हवाएँ हैं, ये कब किसी से डरती हैं
जहाँ भी चाहें बेख़ौफ़ चला करती हैं
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चाहो तो कोशिश कर के देख लो मगर
बड़ी ज़िद्दी हैं कहाँ किसी की सुनती हैं
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हवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
इन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
- मंजू मिश्रा
बेलौस - निस्वार्थ, बिना किसी भेदभाव के
यथार्थ पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया मंजू मिश्रा जी
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2019) को "योग-साधना का करो, दिन-प्रतिदिन अभ्यास" (चर्चा अंक- 3373) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
ReplyDeleteइन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
बहुत सुंदर ...
सादर नमस्कार !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 22 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन सृजन दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
वाह!!!बेहतरीन !!
ReplyDeleteहवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती
ReplyDeleteइन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है
....बहुत सुंदर
बेहतरीन शेर
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