Thursday, June 6, 2019

स्त्री की दास्तां...डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

मैं पानी हूँ..
तरल,स्वच्छ और नरम
ओ समय! तुम यदि पत्थर भी हो
तो कोई बात नहीं
चलती रहूँगी प्यार से
तुम्हारी कठोर सतह पर
धार बनकर
एक दिन तुम्हारी कठोर सतह
पर केवल मेरे निशान होंगे
और होगी कभी न थकने वाली
स्त्री की दास्तां...
डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

5 comments:

  1. नरम सतह पर स्थायी निशान नहीं पडते, कठोर सतह पर पड जाता है

    बहुत सुंदर भाव की रचना

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)

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