2122 2122 212
हुस्न का बेहतर नज़ारा चाहिए ।
कुछ तो जीने का सहारा चाहिए ।।
हो मुहब्बत का यहां पर श्री गणेश ।
आप का बस इक इशारा चाहिए ।।
हैं टिके रिश्ते सभी दौलत पे जब ।
आपको भी क्या गुजारा चाहिए ।।
है किसी तूफ़ान की आहट यहां ।
कश्तियों को अब किनारा चाहिए ।।
चाँद कायम रह सके जलवा तेरा ।
आसमा में हर सितारा चाहिए ।।
फर्ज उनका है तुम्हें वो काम दें ।
वोट जिनको भी तुम्हारा चाहिए ।।
अब न लॉलीपॉप की चर्चा करें ।
सिर्फ हमको हक़ हमारा चाहिए ।।
कब तलक लुटता रहे इंसान यह ।
अब तरक्की वाली धारा चाहिए ।।
जात मजहब।से जरा ऊपर उठो ।
हर जुबाँ पर ये ही नारा चाहिए ।।
अम्न को घर में जला देगा कोई ।
नफरतों का इक शरारा चाहिए ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
शब्दार्थ - शरारा - चिंगारी
वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह !बहुत ख़ूब
ReplyDeleteप्रणाम
बहुत उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteसभी आदरणीय बंधुओं को मेरा सप्रेम नमन ।
ReplyDeleteआ0 यशोदा दिग्विजय अग्रवाल जी रचना को पब्लिश करने हेतु हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteआ0 रूप चन्द्र शास्त्री जी सादर आभार
ReplyDeleteआ0 रूप चन्द्र शास्त्री जी सादर आभार
ReplyDelete