जो दिखता है वो होता तो नहीं है
जो होता है वो सोचा तो नहीं है
चमकती दूर की हर चीज अक्सर
दिखे सोना वो सोना तो नहीं है
हमेशा मुस्कुराता देखा जिसको
वही छुप-छुप के रोता तो नहीं है
मुहब्बत से बने इक आशियाँ में
कोई तन्हा भी खोया तो नहीं है
नज़र बोतते हैं बात दिल की
ज़ुबां अबतक ये खोला तो नहीं है
हमारा दूर का क्या उससे नाता
करीबी उसने बोला तो नहीं है
हमारे साथ जगने की तमन्ना
ले अबतक चाँद सोया तो नहीं है
बढ़िया ग़ज़ल..
ReplyDeleteआभार
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-06-2019) को "बाँट रहे ताबीज" (चर्चा अंक- 3380) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना
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