तल्लीन चेहरों का सच
कभी पढ़कर देखना
कितने ही घुमावदार रास्तों पर
होता हुआ यह
सरपट दौड़ता है मन
हैरान रह जाती हूँ कई बार
इस रफ्त़ार से
....
अच्छा लगता है शांत दिखना
अच्छा लगता है शांत दिखना
पर कितना मुश्किल होता है
भीतर से शांत होना
उतनी ही उथल-पुथल
उतनी ही भागमभाग
जितनी हम
किसी व्यस्त ट्रैफि़क के
बीच खुद को खड़ा पाते हैं .
समझौतों की कोई जु़बान नहीं होती
फिर भी वे हल कर लेते
हर मुश्किल को !!!
लेखक परिचय - सीमा सिंघल सदा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-06-2019) को "करो पश्चिमी पथ का त्याग" (चर्चा अंक- 3378) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही ज्ञानवर्धक और मददगार है।
ReplyDeleteमैं भी ब्लॉगर हूँ
मेरे ब्लॉग पर जाने के लिए यहां क्लिक करें (आयुर्वेदिक इलाज)
सत्य कह रही हैं आप..मन में भी एक ट्रैफिक निरंतर चलता रहता है..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
सदा जी को पढती रहती हूँ | विशिष्ट शैली में लिखी उनकी रचनाएँ अपनी पहचान आप हैं | मनोवैज्ञानिक स्तर पर इंसान को आंकती ये रचना बहुत सार्थक है | सादर
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteक्या बात है ..मन की यात्रा बहुत उलझी होती है . आजकल तो गाड़ी आगे ही नही बढ़ रही . ट्रैफिक के कारण ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही ज्ञानवर्धक और मददगार है।
ReplyDeleteI am a Ayurvedic Doctor.
Cancer Treatment, Kidney Care and Treatment, HIV AIDS