हर दिशा में लम्हा-लम्हा बो गया है
कह के हमसे अलविदा वह जो गया है
कर लिए सूरज से समझौते घटा ने
उजली सुबह का वादा सो गया है
इस शहर में ख़ुशनुमा है आज मौसम
यह समां रंगीन, लेकिन, खो गया है
था किनारे का हंसी मंज़र छलावा
गम के सागर में डुबो हमको गया है
दुश्मनों से प्यार, नफ़रत दोस्तों से
यह ज़माने का चलन हो गया है
-डॉ. ऋचा सत्यार्थी
कर लिए सूरज से समझौते घटा ने
ReplyDeleteउजली सुबह का वादा सो गया है
वाहः सुंदर ग़ज़ल
वाह ! बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन
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