आओ न
पास बैठो तुम
तुम्हारे मौन में
मैं वो शब्द सुनूंगी
जो जुबां कहती नहीं
दिल कहता है तुम्हारा....
आओ न
फिर कभी मेरे इंतजार में
तुम तन्हा उदास बैठो
और दूर खड़ी होकर
मैं तुम्हारी बेचैनी देखूंगी...
आओ न...
मिल जाओ कभी
राहों में बाहें फैलाए
मैं निकल जाऊँगी कतराकर मगर
खुद को उनमें समाया देखूंगी......
आओ न...
फिर से अजनबी बनकर
मेरा रास्ता रोको..मुझसे बात करो
मुझे लेकर दूर कहीं निकल जाओ
वादा है मेरा, झपकने न दूंगी पलकें
बस, तुममें ही डूबकर जिंदगी बसर करूंगी......।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-06-2019) को "-- कैसी प्रगति कैसा विकास" (चर्चा अंक- 3376) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत धन्यवाद यशोदा जी...
ReplyDeleteदिग्विजय जी, आपका बहुत आभार
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteगजब कि पंक्तियाँ हैं ...
ReplyDeleteतुम तन्हा उदास बैठो
ReplyDeleteऔर दूर खड़ी होकर
मैं तुम्हारी बेचैनी देखूंगी...