मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं
क़रार मर के मिलेगा तो मर के देखते हैं
सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
किसी की आँख में ढल जाता है हमारा अक्स
जब आईने में कभी बन सँवर के देखते हैं
हमारे इश्क़ की मीरास है बस एक ही ख़्वाब
तो आओ हम उसे ताबीर कर के देखते हैं
सिवाए खाक के कुछ भी नज़र नहीं आता
ज़मीं पे जब भी सितारे उतर के देखते हैं
यह हुक्म है कि ज़मीन-ए-'फ़राज़' मैं लिखें
सो इस मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं
-हुमैरा राहत
वाह
ReplyDeleteसुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं। वाह। क्या खुब कहा है आपने। बहुत खुब। राजीव उपाध्याय
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3365 दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
अति सुंदर लेख
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति।
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