Sunday, February 3, 2019

कुछ तो हवा सर्द थी.......परवीन शाकिर

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी 

दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी 


बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की 

चाँद भी ऐन चेत का उस पे तेरा जमाल भी 


सब से नज़र बचा के वो मुझ को ऐसे देखते 

एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 


दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लो 

शीशागरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी 


उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था 

अब जो पलट के देखिये बात थी कुछ मुहाल भी 


मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर 

हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी 


शाम की नासमझ हवा पूछ रही है इक पता 

मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मेरा ख़याल भी


उस के ही बाज़ूओं में और उस को ही सोचते रहे 

जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी 
-परवीन शाकिर

4 comments:

  1. बेहतरीन..., अत्यन्त सुन्दर ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बेहतरीन सृजन
    सादर

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