किसी का होना
बस होना भर ही
काफी होता है
हमें भरने के लिए
उस किसी का लौटना
सज़ा होता है
प्रवासी पक्षियों के डेरे
रहते हैं साल भर उदास
बसने और उजड़ने के
बीच कहीं
एक भूमध्य रेखा है
जो कांपती रहती है
उसके हाथ की नरमी से
पिघलने लगा था जो
दिल का उत्तरी ध्रुव
अब एक लुप्त ग्लेश्यिर है
वो जो चाहता है
मैं हो जाऊँ उसकी धूरी
नहीं जाता मैं एक
टूटा हुआ उल्कापिंड हूँ
-पूजा प्रियंवदा
सुन्दर
ReplyDeleteगजब भूगोल का मानवीयकरण।
ReplyDeleteवाह।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-02-2019) को "यादों का झरोखा" (चर्चा अंक-3241) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर