सोचती हूँ
कौन सा धर्म
विचारों की संकीर्णता
की बातें सिखलाता है?
सभ्यता के
विकास के साथ
मानसिकता का स्तर
शर्मसार करता जाता है।
धर्मनिरपेक्षता
शाब्दिक स्वप्न मात्र
नियम -कायदों के पृष्ठों में
दबकर कराहता है।
धर्म पताका
धर्म के नाम का
धर्म का ठेकेदार
तिरंगें से ऊँचा फहराता है।
शांति सौहार्द्र की
डींगें हाँकने वाला
साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
अमन-चैन ढुलवाता है।
अभिमान में स्व के
रौंदकर इंसानियत
निर्मम अट्टहास कर
धर्मवीर तमगा पा इठलाता है।
जीवन-चक्र
समझ न नादां
कर्मों का खाता,बाद तेरे
जग में रह-रह के पलटा जाता है।
मज़हबों के ढेर से
इंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
-श्वेता सिन्हा
सुन्दर
ReplyDeleteमज़हबों के ढेर से
ReplyDeleteइंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
बहुत सही कहा हैं आपने ,अति सुंदर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशांति सौहार्द्र की
ReplyDeleteडींगें हाँकने वाला
साम्प्रदायिकता की गाड़ी में
अमन-चैन ढुलवाता है।
बहुत लाजवाब सटीक अभिव्यक्ति...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'