Wednesday, February 27, 2019

रंग मुस्कुराहटों का.... श्वेता सिन्हा

उजालों की खातिर,अंधेरों से गुज़रना होगा
उदास हैं पन्ने,रंग मुस्कुराहटोंं का भरना होगा

यादों से जा टकराते हैंं इस उम्मीद से
पत्थरों के सीने में मीठा कोई झरना होगा

उफ़नते समुंदर के शोर से कब तक डरोगे
चाहिये सच्चे मोती तो लहरों में उतरना होगा

हर सिम्त आईना शहर में लगाया जाये
अक्स-दर-अक्स सच को उभरना होगा

मुखौटों के चलन में एक से हुये चेहरे
बग़ावत में कोई हड़ताल न धरना होगा

सियासी बिसात पर काले-सादे मोहरे हम
वक़्त की चाल पर बे-मौत भी मरना होगा



5 comments:

  1. श्वेता, कविता की अंतिम पंक्तियों में तुमने मेरे दिल की बात कह दी.
    हम-तुम ही क्या, हमारे सैनिक, हमारे पढ़े-लिखे नौजवान, हमारे किसान-मज़दूर, सभी इन सियासतदानों की शतरंज की बिसात पर बिछाए गए मोहरे हैं, जिनकी कि क़ुरबानी से शाह और वज़ीर को कोई फ़र्क नहीं पड़ता.

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  2. उजालों की खातिर,अंधेरों से गुज़रना होगा
    उदास हैं पन्ने,रंग मुस्कुराहटोंं का भरना होगा....बहुत ही सुन्दर|आदरणीय श्वेता जी ब्लॉग पर आप की कमी खलती है |
    सब कुशल मंगल |
    सादर

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. सियासी बिसात पर काले-सादे मोहरे हम
    वक़्त की चाल पर बे-मौत भी मरना होगा
    बहुत ही लाजवाब .. हमेशा की तरह...
    वाह!!!

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