Wednesday, February 13, 2019

प्रेम....भगवतीचरण वर्मा

बस इतना--अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।

कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं;

पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।

तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे।

तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे।

सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें

अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को

जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें।

था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।

फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।
- भगवतीचरण वर्मा

4 comments:

  1. था प्रेम किया हमने-तुमने
    इतना कर लेना याद प्रिये,
    बस फिर कर देना वहीं क्षमा
    यह पल-भर का उन्माद प्रिये।...बेहतरीन रचना 👌
    सादर

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  2. भगवती चरण वर्मा हिंदी साहित्य की उन बहुमुखी विभूतियों में से थे जिन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास आदि सभी क्षेत्रों में लोकप्रियता के कीर्तिमान स्थापित किये थे. कविता में छायावाद, रूमानीवाद से लेकर प्रगतिवाद तक वह छाए हुए हैं. मैं 'चित्रलेखा' उपन्यास, 'दो-बांके', और प्रायिश्चित व्यंग्य कथाओं और यथार्थवादी कविता - 'भैंसागाड़ी' को हिंदी साहित्य की अनुपम देन मानता हूँ.

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रणय दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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