एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं
तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं
ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
पलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो जाते हैं
तुम होते हो तो हर मंज़र हसीं होता है
जाते ही तुम्हारे रंग सारे फीके हो जाते हैं
उनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
जाने किसका ख़्याल आबाद है ज़हन में
क्यूँ हम ख़ुद से भी अजनबी हो जाते हैं
बीत चुका है मौसम इश्क़ का फिर भी
याद के बादल क़ब्र पे आकर रो जाते हैं
वक़्त का आईना मेरे सवाल पर चुप है
दिल क्यों नहीं चेहरों-से बेपर्दा हो जाते हैं
-श्वेता सिन्हा
तुम होते हो तो हर मंज़र हसीं होता है
ReplyDeleteजाते ही तुम्हारे रंग सारे फीके हो जाते हैं...बहुत सुन्दर 👌|
सादर
बहुत सुन्दर श्वेता !
ReplyDeleteसितार के तार पर चोट लगती है तो संगीत निकलता है और चोट खाया दिल कविता करने लगता है. अगर किसी का चेहरा देख कर उसका दिल पढ़ना आ गया तो फिर किसी से चोट खाने का या किसी से धोखा खाने का सवाल ही नहीं उठेगा. फिर चोट खाए दिल से जो बिरहा गाए जाते हैं, जो गीत लिखे जाते हैं, उनको सुनने का, उनको पढ़ने का, आनंद किसी को मिल ही नहीं पाएगा.
वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-02-2019) को "अपने घर में सम्भल कर रहिए" (चर्चा अंक-3259) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही लाजवाब...
ReplyDeleteउनींदी आँखों के ख़्वाब जागते हैंं रातभर
फ़लक पे चाँद-तारे जब थक के सो जाते हैं
वाह!!!
ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में
ReplyDeleteपलकों से गिर के ख़्वाब कहीं खो जाते हैं
तुम होते हो तो हर मंज़र हसीं होता है
जाते ही तुम्हारे रंग सारे फीके हो जाते हैं।
बहुत सुंदर स्वेता दी।