झरते वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी चहुँओर
चटख रंग उतरे घर आँगन
उमंग की चली फागुनी बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
सिंदूरी रंग साँझ के रंग
मल गये नरम कपोल
तन ओढ़े रेशमी चुनर
केसरी फूल पलाश
आमों की डाली पे कूके
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश
गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश
-श्वेता सिन्हा
कवि परिचय
कवि परिचय
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्त पंचमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह्ह्ह वआह्ह् ¡
ReplyDeleteपलाश का मौसम अब आने को है
जब खिलने लगे पलाश
संजो लेना आंखों मे
सजा रखना हृदय तल मे
फिर सूरज कभी ना डूबने देना
चाहतों के पलाश
बस यूं ही खिले खिले रखना
हरी रहेगी अरमानों की बगिया
प्रेम के हरे रहने तक।
कुसुम कोठारी ।
आमों की डाली पे कूके
ReplyDeleteकोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश....वाह !!बहुत ख़ूब सखी
सादर
वाह,श्वेता जी बेहतरीन रचना
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