जैसे रखती यास्मीं , किंचित ना अभिमान ।
वैसा ही विनयी मेरे , हृदयसुमन को जान।।
शब्दकोष में प्रीति का, है जितना भण्डार।
प्रेम सहित दिलबर मेरे ,कर लेना स्वीकार।।
यह काया इक क्यार है ,दिल है पुष्प गुलाब।
और यास्मीन आपका,हुस्न सुनहला ख़्वाब।।
सात जनम क़ायम रहे , तेरा रूप शबाब।
इसी भाव प्रेषित करूं ,सीधा सरल गुलाब।
-डॉ. यासमीन ख़ान
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-02-2019) को "फीका पड़ा बसन्त" (चर्चा अंक-3245) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'