तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
मैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तू तो इतना बड़ा नहीं होता
चाँद मिलता न राह में उस रोज
इश्क़ का हादसा नहीं होता
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फ़ासला यूं बढ़ा नहीं होता
छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
ReplyDeleteमैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता....बहुत खूब ....लाजवाब
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-02-2019) को "प्रेम का सचमुच हुआ अभाव" (चर्चा अंक-3242) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह
ReplyDeleteखूब 👌
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