Wednesday, February 20, 2019

तुम्हें शत-शत नमन कोटिश....श्वेता सिन्हा

भरी माँग सिंदूर की पोंछ
वो बैठी सब श्रृंगार को नोंच
उजड़ी बगिया सहमी चिड़िया
क्या समझाऊँ असमर्थ हूँ मैं

सब आक्रोशित है रोये सारे
गूँजित दिगंत जय हिंद नारे
वह दृश्य रह-रह झकझोर रहा
उद्विग्न किंतु असमर्थ हूँ मैं

क़लम मेरी मुझे व्यर्थ लगे
व्याकुलता का न अर्थ लगे
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं

मात्र नमन ,अश्रुपूरित नमन
तुम्हें शत-शत नमन कोटिश
हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
यही कहने में समर्थ हूँ मैं


5 comments:

  1. अश्रु-पूरित नयन हों पर साथ उनके आग भी हो,
    घर उजड़ता है अगर, संग, शत्रु-घर की राख भी हो.

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  2. क़लम मेरी मुझे व्यर्थ लगे
    व्याकुलता का न अर्थ लगे
    हे वीरों ! मुझे क्षमा करना
    कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं
    बेहतरीन रचना

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  3. सामयिक और सार्थक प्रस्तुति

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