Monday, February 18, 2019

दो कविताएँ .....स्मृति आदित्य


1.
हां मैं प्रेम में हूं, 
प्रेम मुझमें है
तुम ना कहो ना सही 
मैंने तो हर मोड़ पर 
हर बार यह बात कही.... 
पर हर बार 
तुम्हारी 'वह' बात 
हमेशा बची रही...
जो तुमने कभी नहीं कही...
2.
इससे पहले कि तुम 
लाकर रखो हरसिंगार मेरे सिरहाने 
इससे पहले कि 
गुलमोहर की ललछौंही पत्तियां 
इकट्ठा करो तुम मेरे लिए 
और इससे पहले कि तुम लेकर आओ 
ढेर सारे ताजे गुलाब 
मेरे मंदिर के लिए... 
मैं देती हूं अपने शब्दों के सच्चे गुलाबी फूल 
कि तुम से ही महका है मन-उपवन 

मेरी धरा, मेरा गगन...

-स्मृति पाण्डेय (फाल्गुनि)

6 comments:

  1. बेहद सुन्दर प्रेम कविता। सकारात्मकता लिए....

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  2. वाह बहुत सुन्दर कोमल हृदय गत भाव ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-02-2019) को "कश्मीर सेना के हवाले हो" (चर्चा अंक-3252) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत सुन्दर ...लाजवाब...

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  5. जी, वाकई बहुत बढ़िया कविताएँ हैं। बधाई।

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