आईना लोग मुझको दिखाने लगे ।
जो समय पर ये बच्चे ना आने लगे,
अपने माँ बाप का दिल दुखाने लगे ।
फ़ैसला लौट जाने का तुम छोड़ दो,
फूल आँगन के आँसू बहाने लगे ।
फिर शबे हिज़्र आँसूं मेरी आँख के,
मुझको मेरी कहानी सुनाने लगे ।
आईने से भी रहते है वो दूर अब,
जाने क्यू खुदको इतना छुपाने लगे |
कोई शिकवा नही बेरुखी तो नही,
हम अभी आये है आप जाने लगे ।
तेरी चाहत लिए घर से अर्पित चला,
सारे मंज़र नज़र को सुहाने लगे ।
- अर्पित शर्मा "अर्पित"
परिचय
अर्पित शर्मा जी अर्पित उपनाम से रचनाये लिखते है
आपके पिता का नाम कृष्णकांत शर्मा है | आपका जन्म मध्यप्रदेश के
उज्जैन शहर में 28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप शाजापुर में रहते है |
आपसे इस मेल sharmaarpit28@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है |
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-02-2019) को "आलिंगन उपहार" (चर्चा अंक-3246) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वो अपनी दादी की तरह लगती है : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteवाह, बहुत ख़ूब
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