Tuesday, February 12, 2019

आईने से भी रहते है.....अर्पित शर्मा "अर्पित"

सामने कारनामे जो आने लगे,
आईना लोग मुझको दिखाने लगे ।

जो समय पर ये बच्चे ना आने लगे, 
अपने माँ बाप का दिल दुखाने लगे ।

फ़ैसला लौट जाने का तुम छोड़ दो, 
फूल आँगन के आँसू बहाने लगे ।

फिर शबे हिज़्र आँसूं मेरी आँख के, 
मुझको मेरी कहानी सुनाने लगे ।

आईने से भी रहते है वो दूर अब,
जाने क्यू खुदको इतना छुपाने लगे |

कोई शिकवा नही बेरुखी तो नही,
हम अभी आये है आप जाने लगे ।

तेरी चाहत लिए घर से अर्पित चला, 
सारे मंज़र नज़र को सुहाने लगे ।
- अर्पित शर्मा "अर्पित"

परिचय
अर्पित शर्मा जी अर्पित उपनाम से रचनाये लिखते है 
आपके पिता का नाम कृष्णकांत शर्मा है | आपका जन्म मध्यप्रदेश के 
उज्जैन शहर में 28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप शाजापुर में रहते है | 
आपसे इस मेल sharmaarpit28@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है |

5 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-02-2019) को "आलिंगन उपहार" (चर्चा अंक-3246) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वो अपनी दादी की तरह लगती है : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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