Wednesday, May 30, 2018

मौन.....श्वेता मिश्र

मौन मुखर प्रश्न मेरे 
उत्तर विमुख हुए जाते हैं
स्याह सी रात के साए
आ उन्हें सुलाते हैं 

नदिया चुप सी बहती है
चाँदनी मौन में निखरती है
अंतर्मन के उथल पुथल में
मौन रच बस मचलती है 

मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है 
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है 
एकांकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है
-श्वेता मिश्र

14 comments:

  1. वाह मौन मुखुर प्रश्न ।
    अप्रतिम ।

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  2. वाह मौन यक्ष प्रश्न सा बोलता ..

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  3. वाह बेहद खूबसूरत लाजवाब

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  6. बहुत सुन्दर....

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  7. वाह ! बेहतरीन रचना !! बहुत खूब आदरणीया ।

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