बीती रात,
झकझोर दिया इक ख्याल ने
उठ बैठी
अंधेरी काली रात में
चहुँ ओर सिर्फ अन्धकार,
बुझ गये सारे दीये,
अरे, कोई टिमटिमा भी नहीं रहा,
ये बेबुनियाद लम्हें
ये सरकती सी ज़िन्दगी
पूछती सिर्फ इक सवाल
अब किसका इन्तज़ार
सलाम होता कुर्सी, जवानी व
पैसे को,
विदाई ले चुके यह सब
रह गई सिमटी सी देह,
खुश्क आँखें, कंपकंपाते हाथ,
टपकती छतें व सिलवटों
से भरे बिस्तर,
नाहक जीने की चाह,
ख्याल जीत गया,
पूछ ही बैठा दोबारा,
बता अब किसका इन्तज़ार।
-शबनम शर्मा
ख्याल जीत गया .... अनुपम सृजन
ReplyDeleteवाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर!!!
ReplyDeleteसलाम होता कुर्सी, जवानी व
ReplyDeleteपैसे को,
विदाई ले चुके यह सब
रह गई सिमटी सी देह,
अब किसका इंतजार.....
वाह!!!
बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (03-05-2017) को "मजदूरों के सन्त" (चर्चा अंक-2959) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह गहनता समेटे शानदार धाराप्रवाहता हृदय छूती रचना।
ReplyDeleteइंतजार किसका उम्र के चढाव के उतार का...
या हसरतों के सिमटते व्यवधान का।
गजब 👌
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार ३ मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1021 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत सुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteभावप्रवण, मर्मस्पर्शी प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लिखा है शबनम जी
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर रचना.
ReplyDeleteआपका स्वागत है मेरे यहाँ -----> खैर