शाहजहां ने बनवाकर ताजमहल
याद मे मुमताज के,
डाल दिया आशिकों को परेशानी मे।
आशिक ने लम्बे "इंतजार" के बाद
किया "इजहारे" मुहब्बत
"नशा" सा छाने लगा था दिलो दिमाग पर
कह उठी महबूबा अपने माही से
कब बनेगा ताज हमारे सजदे में
डोल उठा! खौल उठा!! बोला
ये तो निशानियां है याद में
बस जैसे ही होगी आपकी आंखें बंद
बंदा शुरू करवा देगा एक उम्दा महल
कम न थी जानेमन भी
बोली अदा से लो कर ली आंखें बंद
बस अब जल्दी से प्लाट देखो
शुरू करो बनवाना एक "ख्वाब" गाह
जानु की निकल गई जान
कहां फस गया बेचारा मासूम आशिक
पर कम न था बोला
एक मकबरे पे क्यों जान देती हो
चलो कहीं और घूम आते हैं
अच्छे से नजारों से जहाँ भरा है,
बला कब टलने वाली थी
बोली चलो ताज नही एक फ्लैट ही बनवादो
चांद तारों से नही" गुलाबों" से ही सजा दो
"उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई"
अब खुमारी उतरी सरकार की बोला
छोड़ो मैं पसंद ही बदल रहा हूं
आज से नई गर्लफ्रेंड ढूंढता हूं
मुझमे शाहजहां बनने की हैसियत नही
तुम मुमताज बनने की जिद पर अड़ी रहो
देखता हूं कितने और ताजमहल बनते हैं
हम गरीबों की "वफा" का माखौल उडाते है
जीते जी जिनके लिए सकून का
एक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं।
-कुसुम कोठारी
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार ऋषभ शुक्ला जी।
Deleteवाह ! सरस-सुंदर के साथ साथ मजेदार ! एक अलग प्रयोग एकरसता को तोड़ता और अपनी अलग छाप छोड़ता हुआ !
ReplyDeleteसादर आभार मीना जी सच कुछ अलग लिखने का ही सोच रही थी, और सभी को पसंद आ रही है तो लगता है प्रयोग सफल रहा आप को सक्रिय प्रतिक्रिया कै साथ देख बहुत खुशी हुई।
Deleteपुनः आभार।
अरे.वाह्ह दी....👌👌
ReplyDeleteबढ़िया प्रयोग से एक अलग स्वाद की रचना बनी है।
सुंदर।
सस्नेह आभार श्वेता आपकी दो पंक्तियां सदा मेरी रचना का सम्मान करती है ।
Deleteसस्नेह ।
जीते जी जिनके लिए सकून का
ReplyDeleteएक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं।....... यह माज अलफ़ाज़ नहीं, हकीक़त है!
सादर आभार विश्व मोहन जी प्रबुद्ध विस्तार दिया आपने।
Deleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार, सर आप तो व्यंग लिखने मे माहिर है अगर सच अच्छी लगी तो समझूं रचना पुरस्कृत हुई। सादर।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-05-2018) को "माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है" (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय।
Deleteमै अनुग्रहित हुई।
वाह !!!बहुत ही शानदार रचना।
ReplyDeleteसखी स्नेह आभार।
Deleteदेखता हूं कितने और ताजमहल बनते हैं
ReplyDeleteहम गरीबों की "वफा" का माखौल उडाते है
जीते जी जिनके लिए सकून का
एक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं
वाह!!!
बहुत सुन्दर ....लाजवाब....
सुधा जी आपकी सराहना और अंतिम सार पंक्तियों पर विशेष पकड़ ने सच रचना को पूर्णता प्रदान की।
Deleteसादर आभार।