शब्दों के रिश्ते हैं
शब्दों से
कोई चलता है उँगली पकड़कर
साथ - साथ
कोई मुँह पे उँगली रख देता है
कोई चंचल है इतना
झट से जुबां पर आ जाता है
कोई मन ही मन कुलबुलाता है
किसी शब्द को देखो कैसे खिलखिलाता है !
....
दर्द के साये में शब्दों को
आंसू बहाते देखा है
शब्दों की नमी
इनकी कमी
गुमसुम भी शब्दों की दुनिया होती है
कुछ अटके हैं ... कुछ राह भटके हैं
कितने भावो को समेटे ये
मेरे मन के आंगन में
अपना अस्तित्व तलाशते
सिसकते भी हैं !!
....
जब भी मैं उदासियों से बात करती हूँ,
जाने कितनी खुशियों को
हताश करती हूँ
नन्हीं सी खुशी जब मारती है किलकारी,
मन झूम जाता है उसके इस
चहकते भाव पर
फिर मैं शब्दों की उँगली थाम
चलती हूँ हर हताश पल को
एक नई दिशा देने
कुछ शब्द साहस की पगडंडियों पर
दौड़ते हैं मेरे साथ-साथ
कुछ मुझसे बातें करते हैं
कुछ शिकायत करते हैं उदास मन की
कुछ गिला करते हैं औरों के बुरे बर्ताव का
मैं सबको बस धैर्य की गली में भेज
मन का दरवाजा बंद कर देती हूँ !!!
- सीमा 'सदा' सिंघल
बहुत बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधेर्य के बांध से कब तक रोकें शब्दों को
ReplyDeleteशब्दों का कर्म है कि वो प्रतिक्रिया करे
सुंदर
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteवाह!!!
सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-05-2017) को "मिला नहीं है ठौर ठिकाना" (चर्चा अंक-2963) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपका बहुत बहुत आभार ......
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