अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिये
अब न ढूंढना
उजालो में हमें कभी।
हम मिलेंगे सुरमई
शाम के घेरों में
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।
नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी में
राहों पे निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।
आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं मे
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।
-कुसुम कोठारी
सादर आभार आदरणीय
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना। लाजवाब !!!
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteआहट पर न चौंकना
ReplyDeleteना मौजूद होंगे हवाओं मे
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।
इन्तजार....बहुत सुन्दर...
वाह!!!
जी स्नेह आभार सखी ।
Deleteआपका स्नेह मन मोह लेता है।
बहुत खूब
ReplyDeleteसादर आभार ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सादर आभार आदरणीय, मेरी रचना चुनने के लिए पुनः आभार।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteलोट कर पहुंच जाएँ वहीं ...और फिर वही तुम हो इस आशा में तो जीवन दे रखा है बस इंतजार है उस समय का जब ये घटित हो.
ReplyDeleteवाह सुंदर ।
Deleteसादर।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूब!!
ReplyDeleteअंधेरे से कर प्रीति
ReplyDeleteउजाले सब दे दिये
अब न ढूंढना
उजालो में हमें कभी।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.....
वाह वाह दीदी जी
ReplyDeleteसमर्पित जीवन के उजीयारे सारे
जलती प्रेम की आग में
पीते विरह के घूंट सारे
एक इंतजार की आस में
लाजवाब सुंदर भावपूर्ण रचना 👌