Saturday, May 5, 2018

इंतजार की बेताबी............ कुसुम कोठारी

अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिये 
अब न ढूंढना
उजालो में हमें कभी।

हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों में 
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।

नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी में 
राहों पे निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।

आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं मे 
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।

-कुसुम कोठारी 

17 comments:

  1. सादर आभार आदरणीय

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  2. बहुत खूबसूरत रचना। लाजवाब !!!

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  3. आहट पर न चौंकना
    ना मौजूद होंगे हवाओं मे
    अलविदा भी न कहना
    शायद लौट आयें कभी।
    इन्तजार....बहुत सुन्दर...
    वाह!!!

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    1. जी स्नेह आभार सखी ।
      आपका स्नेह मन मोह लेता है।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    1. सादर आभार आदरणीय, मेरी रचना चुनने के लिए पुनः आभार।

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  5. बहुत बढ़िया

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  6. लोट कर पहुंच जाएँ वहीं ...और फिर वही तुम हो इस आशा में तो जीवन दे रखा है बस इंतजार है उस समय का जब ये घटित हो.

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  8. वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूब!!

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  9. अंधेरे से कर प्रीति
    उजाले सब दे दिये
    अब न ढूंढना
    उजालो में हमें कभी।
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.....

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  10. वाह वाह दीदी जी
    समर्पित जीवन के उजीयारे सारे
    जलती प्रेम की आग में
    पीते विरह के घूंट सारे
    एक इंतजार की आस में

    लाजवाब सुंदर भावपूर्ण रचना 👌

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