मौन मुखर प्रश्न मेरे
उत्तर विमुख हुए जाते हैं
स्याह सी रात के साए
आ उन्हें सुलाते हैं
नदिया चुप सी बहती है
चाँदनी मौन में निखरती है
अंतर्मन के उथल पुथल में
मौन रच बस मचलती है
मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है
एकांकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है
-श्वेता मिश्र
वाह मौन मुखुर प्रश्न ।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
सादर आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteबढ़िया!
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteवाह मौन यक्ष प्रश्न सा बोलता ..
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteवाह बेहद खूबसूरत लाजवाब
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवाह ! बेहतरीन रचना !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
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