मौन मुखर प्रश्न मेरे
उत्तर विमुख हुए जाते हैं
स्याह सी रात के साए
आ उन्हें सुलाते हैं
नदिया चुप सी बहती है
चाँदनी मौन में निखरती है
अंतर्मन के उथल पुथल में
मौन रच बस मचलती है
मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है
एकांकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है
-श्वेता मिश्र
वाह मौन मुखुर प्रश्न ।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
सादर आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteबढ़िया!
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteवाह मौन यक्ष प्रश्न सा बोलता ..
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteवाह बेहद खूबसूरत लाजवाब
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 31 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1049 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.05.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2987 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवाह ! बेहतरीन रचना !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
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