Monday, May 28, 2018

ये कैसा संगीत रहा है....ललित कुमार

मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल
मेरा जीवन बीत रहा है
पल-पल के रिसते जाने से
जीवन-पात्र रीत रहा है
उसको पाने की ख़ातिर तो
खुद से भी मैं बिछड़ चुका हूँ
मिला नहीं क्यों अब तक मुझको
जो मेरा मनमीत रहा है

पता नहीं खुशी का अंकुर
कब झाँकेगा बाहर इससे
विश्वास का माली बरसों से
मन-भूमि को सींच रहा है

उठे दर्द की तरंगो-सा
गिरे ज्यों आँसू की हो बूँद
मेरे जीवन-वाद्य पर बजता
ये कैसा संगीत रहा है!

विजेता मेरे हृदय की तुम
उल्लास में पर ये ना भूलो
कोई हृदय को हार रहा है
तभी तो कोई जीत रहा है

समझा नहीं पाया तुमसे
कितना प्यार रहा है मुझको
नाम तुम्हारा ही पुकारता
मेरा हर इक गीत रहा है

मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल
मेरा जीवन बीत रहा है…
-ललित कुमार

6 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-05-2018) को "सहते लू की मार" (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. lalit ji ka likha bahut dino ke baad padhne ko mila, dhanyawad yashoda ji

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  4. वाह!!बहुत सुंदर .।

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  5. सुन्दर रचना....
    वाह!!!

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  6. कोई हृदय को हार रहा है
    तभी तो कोई जीत रहा है----- क्या बात है बहुत ही सराहनीय सृजन !! वाह के अलावा कुछ नहीं |सादर --

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