उनकी नजरों मैं हमने देखा
बला की चाहत छुपी हुई है
छलक के आँसू निकल के बोला
यही तो आदत बड़ी बुरी है !
चलते चलते मुंडे अचानक
तिरछी नजर से जो हमको देखा
भीगे से लब मुस्कुरा के बोले
कहके ना जाना आदत बुरी है !
आंखों मैं आँसू हँसी लबों पे
दुआ ये किसके लिये हुई है
किसकी किस्मत मैं हाजरीनो
ये कयामत की बानगी है !
रुके या जाये नजर ये बोले
लफ्जों में क्या खूब तासीर सी है
बिन कहे ही गजल सी कह गये
यही तो उनकी मौसकी है !
डॉ. इन्दिरा ✍
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-05-2017) को "गीदड़ और विडाल" (चर्चा अंक-2977) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
वाह वाह क्या बात है
ReplyDeleteक्या सुंदर अल्फाज़ है
लाजवाब 👌
अति आभार राधा जी
ReplyDeleteअति सुंदर
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