Tuesday, May 22, 2018

रेगिस्तानी प्यास......गीतकार जानकीप्रसाद 'विवश'

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आज भुनने लगी अधर है , 
रेगिस्तानी प्यास।

रोम रोम में लगता जैसे , 
सुलगे कई अलाव ।
मन को , टूक टूक करते,
ठंडक के सुखद छलाव ।

पंख कटा धीरज का पंछी ,
लगता बहुत उदास।

महासमर का दृश्य ला रही है,
शैतान लपट ।
धूप, चील जैसी छाया पर ,
प्रति पल रही झपट ।

कर वसंत को याद बगीचा,
...देखे महाविनाश।

सबको आत्मसमर्पित पा कर ,
सूरज शेर हुआ ।
आतप , भीतर छिपे सभी ,
कैसा अंधेर हुआ ।

परिवर्तन की आशा जब तक,
होना नहीं निराश।

बाढ़ थमेगी तभी ग्रीष्म की , 
पावस जब आये ।
लू -लपटों की भारी गर्मी , 
तब मुँह की खाए ।

अनुपम धैर्य प्रकृति का लख ,
मौसम कहता शाबाश ।

  सर्वाधिकार - गीतकार जानकीप्रसाद 'विवश '

7 comments:

  1. बहुत सुंदरता से ग्रीष्म की भयावहता का वर्णन ।
    साथ ही पावस की आस... धीरे धीरे रे मना..
    अप्रतिम ।

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  2. बहुत सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है आपने

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-05-2018) को "वृद्ध पिता मजबूर" (चर्चा अंक-2979) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    सोमवार 28 मई 2018 को प्रकाशनार्थ साप्ताहिक आयोजन हम-क़दम के शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां अंक (1046 वें अंक) में सम्मिलित की गयी है।


    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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