मां को काट दोगे
माना जन्म दाता नहीं है
पर पाला तुम्हें प्यार से
ठंडी छांव दी प्राण वायु दी
फल दिये
पंछिओं को बसेरा दिया
कलरव उनका सुन खुश होते सदा
ठंडी बयार का झोंका
जो लिपटकर उस से आता
अंदर तक एक शीतलता भरता
तेरे पास के सभी प्रदुषण को
निज मे शोषित करता
हां, काट दो बुड्ढा भी हो गया
रुको!! क्यों काट रहे बताओगे?
लकडी चहिये हां, तुम्हें भी पेट भरना है
काटो पर एक शर्त है
एक काटने से पहले
कम से कम दस लगाओगे।
ऐसी जगह कि फिर किसी
विकास की भेट ना चढूं मै
समझ गये तो रखो कुल्हाड़ी
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मै अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुं
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूं
और तुम मेरे नन्हों को संभालना
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें
आज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
फल ही नही जीवन भी पायेंगे।
-कुसुम कोठारी
एक पेड काटने वालों
पहले दस पेड़ लगाओ
फिर हाथ में आरी उठाओ
सादर आभार सखी आपकी धरोहर मे मेरी रचना को सम्मलित करने के लिये।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-05-2017) को " बेवकूफ होशियारों में शामिल" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार मेरी रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिये, मै अनुग्रहित हूं आदरणीय ।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजेसे माँ निस्वार्थ भाव से अपने बच्चों को दूध पिलाती है,प्यार करती है वेसे ही पेड़ हमें निस्वार्थ भाव से प्राण वायु देते रहते हैं.
१० लगाओ लेकिन १ काटो वही क्यूँ ..? ये एक जीव हत्या के बराबर है.
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)
विस्तृत व्याख्या आपकी सटीक, सादर आभार।
Deleteआपने सही कहा के ये जीव हत्या के बराबर है पर प्रकृति दत्त ये साधन है मनुष्य की कई जरूरत पुरा करने का साधन है सो काटने तो पड़ेगे पर अगर आगे से आगे लगाते रहोगे तो पर्यावरण का संतुलन बना रहेगा, हां जबरदस्ती वन काटना या बडी इमारतों या शहरों के विस्तार या फिर बडे माॅल या स्वार्थ और लालच वश काटने पर रोक लगाना अत्यावश्यक है ।
मेरे विचार हैं कहीं कोई अतिक्रमण हुआ हो तो क्षमा करें।
सादर ।
दी,बहुत सुंदर रचना सार्थक संदेश के साथ।
ReplyDeleteआज जरूरत है खुद को जागरूक करने की अपने आस पास अगर संभव हो तो पेडं अवश्य लगाकर हम पर्यावरण को.शुद्ध करने में सहयोग कर सकते हैं।
स्नेह आभार श्वेता हम स्वयं ये कर सकते हैं बच्चों को ऐसा करने मे आनंद आता है और वे बढ़ चढ़कर ऐसी गतिविधियों मे भाग लेते हैं उत्साह के साथ और बहुत खुश होते हैं, कहते हैं हमे इको फ्रेंडली काम करने चाहिये और वे उसे नैतिक कर्तव्य मान करते हैं जरुरत है बस जागरूकता फैलाने की ।
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteजी इस सम्मान के लिये तहे दिल से शुक्रिया ।
Deleteमै अवश्य बुलेटिन पर आऊंगी ये मेरा सौभाग्य होगा।
सादर
बहुत सुंदर और सत्य लिखा
ReplyDeleteसादर आभार आपका रश्मि जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २१ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।
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