देखती हूँ सिलवटें ही सिलवटें,
बिछौने पर पड़ी, खुद निकालूँ,
तन की निकालता 'सलाहकार'
मन:स्थिति का, कोई चमत्कार।
धरती पर सिलवट! हाहाकार,
व्योम टिका रहे, खुश बेशुमार।
कैसी भी हों, कहलाए मुसीबत
इन्हें निकालता,'एक मददगार' ।
हवा स्वतंत्र, सहती न सिलवट,
ज़िंदगी अधूरी है! बिना करवट।
यदि जीतना, दुर्गम लक्ष्य चाहो,
साहस से लाँघ लो, हर रुकावट।
-कविता गुप्ता
अतिसुन्दर
ReplyDeleteसिलवटें मन की, धरती की मिटानी जरूरी हैं...
ReplyDeleteअच्छा बिम्ब दिया!
स्वयं का हौसला ही सलाहकार और मददगार है सुंदर कथन
ReplyDeleteसाहस से लांघ लो हर रुकावट।
प्रेरणा प्रेसित करती रचना।
लाजवाब व सुंदर प्रस्तुती
ReplyDeleteस्वागत हैं आपका खैर
Kitni sundar kavita hai!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
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