Thursday, May 3, 2018

सिलवटें !!......कविता गुप्ता

देखती हूँ सिलवटें ही सिलवटें,
बिछौने पर पड़ी, खुद निकालूँ, 
तन की निकालता 'सलाहकार' 
मन:स्थिति का, कोई चमत्कार। 

धरती पर सिलवट! हाहाकार,
व्योम टिका रहे, खुश बेशुमार। 
कैसी भी हों, कहलाए मुसीबत 
इन्हें निकालता,'एक मददगार' ।

हवा स्वतंत्र, सहती न सिलवट,
ज़िंदगी अधूरी है! बिना करवट। 
यदि जीतना, दुर्गम लक्ष्य चाहो,
साहस से लाँघ लो, हर रुकावट।
-कविता गुप्ता

6 comments:

  1. सिलवटें मन की, धरती की मिटानी जरूरी हैं...
    अच्छा बिम्ब दिया!

    ReplyDelete
  2. स्वयं का हौसला ही सलाहकार और मददगार है सुंदर कथन
    साहस से लांघ लो हर रुकावट।
    प्रेरणा प्रेसित करती रचना।

    ReplyDelete
  3. लाजवाब व सुंदर प्रस्तुती

    स्वागत हैं आपका खैर 

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete