Wednesday, May 9, 2018

खाली दोनों हाथ हैं.....कल्पना सक्सेना

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सांस गई पहचान गई है
अब कोई पहचान नहीं
टैग लगाकर मुझे लिटाया
जब  से मुझ में जान नहीं

बड़ा ऐंठता फिरता था मैं
भरकर सदा जुनून से
अब तो मेरा तन भी
खाली है मेरे ही खून से

साथ सभी थे जीवन भर जो
वो भी अब ना साथ हैं
अब ना कुछ भी पास में मेरे
खाली दोनों हाथ हैं

रंग बिरंगे कपड़े पहने
सदा रहा मैं क्यूँ इतराता
आखिर मैंने पाया कफन
जो सबको पहनाया जाता

बड़ी कमाई दौलत जो थी
वो भी अब ना पास है
दो गज मिले जमीं अब तो
या कुछ लकड़ी की आस है

-कल्पना सक्सेना

8 comments:

  1. मृत्यु के सत्य का बेबाक अभिव्यक्ति सूंदर रचना कल्पना जी शुभकामनाये

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  2. वाह !!!लाजवाब !!!

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  3. हकीकत पता है तब भी मगरूर हूँ मैं
    उम्दा रचना

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  4. जीवन का यह सत्य हम सभी जानते है लेकिन ताउम्र इसे झुठलाने में लगे रहते है|
    सुन्दर रचना|

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  5. अनत यात्रा पर चलने वाला इंसान जरुर यही सोचता होगा बहुत ही सार्थक रचना आदरणीय कल्पना जी |

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.05.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2966 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  7. बहुत ही सुंदर रचना कल्पना जी।

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