उनकी बज्म तक चलकर जाना आ गया।
खूबसूरत सफर का लुत्फ़ उठाना आ गया।।
यूं बैठे थे सारे मेहरबां मुद्दत से नकाब में।
तीर निशाने पर हमको लगाना आ गया।।
तोड़कर लाते थे कभी वो फूल गुलाब का।
कांटो से हमको दिल का लगाना आ गया।।
पेशे खिदमत में हमारी उनकी तहरीर थी।
चार लफ्जों से हमें उनको लुभाना आ गया।।
लगाओ बोली शौक से बिकने को तैयार हूं।
तुम्हारी कीमत का अंदाजा लगाना आ गया।।
- प्रीती श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteतोड़कर लाते थे कभी वो फूल गुलाब का।
ReplyDeleteकांटो से हमको दिल का लगाना आ गया।।
बहुत सुन्दर...
वाह!!!
वाह !!! बहुत खूब.........
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-03-2019) को "आँगन को खुशबू से महकाया है" (चर्चा अंक-3266) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत खूब
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