करो आतंकियों पर वार अबकी बार होली में.
न उनको मिल सके घर-द्वार अबकी बार होली में.
बना तोपोंकी पिचकारी चलाओ यार अब जी भर.
निशाना चूक न पाए, रहो गुलज़ार होली में.
बहुत की शांति की बातें, लगाओ अब उन्हें लातें.
न कर पायें घातें कोई अबकी बार होली में.
पिलाओ भांग उनको फिर नचाओ भांगडा जी भर.
कहो बम चला कर बम, दोस्त अबकी बार होली में.
छिपे जो पाक में नापाक हरकत कर रहे जी भर.
करो बस सूपड़ा ही साफ़ अब की बार होली में.
न मानें देव लातों के कभी बातों से सच मानो.
चलो नहले पे दहला यार अबकी बार होली में.
जहाँ भी छिपे हैं वे, जा वहीं पर खून की होली.
चलो खेलें 'सलिल' मिल साथ अबकी बार होली में.
-आचार्य संजीव सलिल
शुभकामनाएं होली पर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-03-2019) को "होली तो होली हुई" (चर्चा अंक-3282) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऔं के साथ-
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'