तन्हाइयों में गुम ख़ामोशियों की
बन के आवाज़ गुनगुनाऊँ
ज़िंदगी की थाप पर नाचती साँसें
लय टूटने से पहले जी जाऊँ
दरबार में ठुमरियाँ हैं सर झुकाये
सहमी-सी हवायें शायरी कैसे सुनायें
बेहिस क़लम में भरुँ स्याही बेखौफ़
तोड़कर बंदिश लबों की, गीत गाऊँ
गुम फ़िजायें गूँजती बारुदी पायल
गुल खिले चुपचाप बुलबुल हैं घायल
मंदिर,मस्जिद की हद से निकलकर
छिड़क इत्र सौहार्द के,नग्में सुनाऊँ
हादसों के सदमे से सहमा शहर
बेआवाज़ चल रही हैं ज़िंदगानी
धुँध की चादर जो आँख़ों में पड़ी
खींच दूँ नयी एक सुबह जगाऊँ
बंद दरवाज़े,सोये हुये हैंं लोग बहरे
आम क़त्लेआम, हँसी पर हज़ार पहरे
चीर सन्नाटों को, रचा बाज़ीगरी कोई
खुलवा खिडकियाँ आईना दिखाऊँ
काश! आदमियत ही जात हो जाये
दिलों से मानवता की बात हो जाये
कूची कोई जादू भरी मुझको मिले
स्वप्न सत्य करे,ऐसी तस्वीर बनाऊँ
काश आदमियत की जात हो जाए
ReplyDeleteदिलों में मानवता की बात हो जाए
कुची कोई जादू भरी मिले मुझको
स्वप्न सत्य करे ऐसी तस्वीर बनाऊं
बहुत खूब
बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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ReplyDeleteजी नमस्ते
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-03-2019) को "दिल तो है मतवाला गिरगिट" (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
अनीता सैनी
अदम्य आशावाद से भरी है हर पंक्ति...घोर निराशा से जूझती मानवता के लिए अमृत बूँदे बन बरसनेवाले ऐसे विचारों की आज हमें जरूरत है।
ReplyDeleteसपने, मानवता के, बुन लो,
ReplyDeleteउधड़े गर, तो, दुखी न होना.
मत्स्य-न्याय का राज देखकर,
तुम अपना धीरज मत खोना.