श्यामल घटा से थे कभी केसुये जो मेरे !
चाँदी-सी कुछ-कुछ इनमे चमकने सी लगी है !!
गुमान तो मुझे जो जवानी पर मेरी !
धीरे-धीरे उमर अब ढलने सी लगी है ! !
हर रूपसी में नज़र आती थी मासूका !
बहन-बेटी अब दिखने सी लगी है ! !
जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक !
मेरी तो दुनिया ही मानो बदलने सी लगी है ! !
-गुरदीप सिंह
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह!!!
सुन्दर
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहर रूपसी में नज़र आती थी मासूका !
ReplyDeleteबहन-बेटी अब दिखने सी लगी है ! !
जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक !
मेरी तो दुनिया ही मानो बदलने सी लगी है ! !
'परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं'
यथार्थ आत्मभियक्ति
रचनाकार को बधाई