Saturday, March 23, 2019

जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक....गुरदीप सिंह

श्यामल घटा से थे कभी केसुये जो मेरे !
चाँदी-सी कुछ-कुछ इनमे चमकने सी लगी है !!

गुमान तो मुझे जो जवानी पर मेरी !
धीरे-धीरे उमर अब ढलने सी लगी है ! !

हर रूपसी में नज़र आती थी मासूका !
बहन-बेटी अब दिखने सी लगी है ! !

जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक !
मेरी तो दुनिया ही मानो बदलने सी लगी है ! !
-गुरदीप सिंह

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर...
    वाह!!!

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. हर रूपसी में नज़र आती थी मासूका !
    बहन-बेटी अब दिखने सी लगी है ! !

    जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक !
    मेरी तो दुनिया ही मानो बदलने सी लगी है ! !

    'परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं'
    यथार्थ आत्मभियक्ति
    रचनाकार को बधाई

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