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उन्हें बुरी लगती हैं आलसी औरतें
मिट्टी के लोंदे-सी पड़ी
उन्हें बुरी लगती हैं
कैंची की तरह जबान चलाती औरतें
जिनके बोलने से घुलने लगता है कानों में पिघला शीशा
उन्हें बुरी लगती हैं
प्रतिरोध करने वाली औरतें
जैसे खो चुकी हों
सारे स्त्रियोचित गुण
छोटे कपड़े पहनने वाली औरतें
भी उन्हें बुरी लगती हैं
कि जिस्म उघाड़ती फिरती हैं
दुनिया भर में
लेकिन..
उन्हें सबसे ज्यादा बुरी लगती हैं वे औरतें
जो उघाड़ कर रख देती हैं अपनी आत्मा को
न सिर्फ घर में
बल्कि घर से बाहर,
देश, समाज और दुनिया के मुंह पर
खोल के रख देती हैं दोमुँही रवायतों की कलई
इसलिए तो दुनिया का कोई भी सभ्य समाज
नहीं निरस्त करता सनी लियोन का वीज़ा
लेकिन तसलीमा का वीज़ा निरस्त होता है हर समाज में
हर देश और समाज से निष्कासित हैं
कितनी ही तसलीमा
बहुत विचारोत्तेजक रचना ! किन्तु कठमुल्लाओं के दबाव में तस्लीमा नसरीन का वीज़ा निरस्त किया जाना शर्मनाक है लेकिन इसको सनी लियोनी का वीज़ा निरस्त न किये जाने से जोड़ना बिलकुल गलत है. सनी लियोनी को एक पापन मानना भी पुरुष-सत्तात्मक समाज के, स्त्री और पुरुष के विषय में, दोहरे नैतिक मापदंड को प्रतिध्वनित करता है.
ReplyDeleteनसरीन और लियोनी, एक डर पैदा करती है और दूसरी ज़र ! यही कारण है वीज़ा मिलने और ना मिलने का !
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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