वफा के बदले वफा क्यूँ नही देते।
जख्म दिया है दवा क्यूँ नही देते।।
आंख है नम जो तुम्हारे साथ से।
तुम उसे अभी भुला क्यूँ नही देते।।
मुहब्बत नही जब तुम्हारी रूह से।
गुनाह की उसे सजा क्यूँ नही देते।।
दिल है तुम्हारा नाजुक आइने सा।
दीदार उसे भी करा क्यूँ नही देते।।
देवता है जो वो पत्थर का साहिब।
बीच चौराहे उसे दफना क्यूँ नही देते।।
जिओगे कब तक उसका नाम लेकर।
लिखकर खत जला क्यूँ नही देते।।
फायदा क्या तुम्हारे ऐसे जीने से।
उसको भी तुम रूला क्यूँ नही देते।।
-प्रीती श्रीवास्तव
वाह
ReplyDeleteवाह !👌👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-03-2019) को "बरसे रंग-गुलाल" (चर्चा अंक-3280) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर प्रस्तुति। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनयी पोस्ट : मंदिर वहीं बनाएंगे।