प्रेम का प्रथम स्पर्श
उतना ही पावन व निर्मल
जैसे कुएं का
बकुल-
तपती धूप में प्रदान करता
शीतलता-
सौंधी महक लिए।
जब मिलता तो लगे
बहुत कम
लेकिन
बढते वक्त के साथ
भर जाता लबालब
परिपूर्ण हो जाता कुआं
हमेशा प्यास बुझाने के लिए
कभी न कम होने के लिए।
प्रेम का प्रथम स्पर्श
मानो कुएं का बकुल।
-ज्योति जैन
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-03-2019) को "सवाल हरगिज न उठायें" (चर्चा अंक-3273) (चर्चा अंक-3211) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'